Thursday, August 19, 2010

परमात्मा यहीं है....

एक बार विख्यात संत बाबा मुक्तानंद परम हंस लोगो के साथकुचिया में बैठकर नेदांत और परमात्मा परचर्चा कर रहे थे नहां उपस्थित एक भक्त ने उनसे प्रश्न किया बाबा क्या जीनित रहते हुए परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं उन्होंने कहा तुम हर क्षण ही परमात्मा के दर्सन करते हो किंतु ज्ञान चक्षु न होने के कारण तुम उन्हे पहचान नहीं पाते हो यह जगत परमात्मा का ही प्रतिबिंब है वेदांत का कथन सप्ने खल्विदं ब्रह्म पूर्णतः सत्य है सर्व देश,सर्व तीर्थ सर्व नाम परमात्मा के हैं औऱ इस पृथ्वी के सारे स्थान प्रभु के क्षेत्र हैं।जगत के सभी आकार रूपों मे परमात्मा का रूप छिपा है।उस अनंत ईश्वर की महिमा अनंतः उसका नाम अनंत उसकी लीला अनंत है और परमात्मा का कोई अंत नहीं है।तुम किसी भी शास्त्र का अध्ययन कर लो वह पूरा नहीं होगा कितने ही तीर्थों की यात्रा कर लो ,फिर भी अनेक तीर्थ बच जायेगें।कितनी दूर तक दृष्टि डाल लो नज़र उस असीमित ऊंचाई तक नहीं पहुंच सकती । ऐसी दिव्य व्यापकता विशालता और दिव्य महिमा है भगवत तत्व की ।यह क्षणभंगुर शरीर कहीं बाहर खोजते खोजते समय गंवाकर प्राणहीन होकर दुर्लभ मानव जीवन को निष्फल न कर डाले....।
                           मुक्तानंद बाबा ने परमात्मा को पहचानने का उपाप बताते हुए कहा "ध्यान के निरंतर अभ्यास,अंतर्मुखी बनने के प्रत्येक मानव में परमात्मा के दर्शन स्वतः होने लगेगें।दिव्य आनंद की अनुभूति होने लगेगी।परमात्मा स्वयं कह उठेगा,मोको तू ढूंढ़े बंदे मैं तो तोरे पास"


कहने का तात्पर्य
"संसार के दुखों को देखकर आज मनुष्य परमात्मा के दर्शन करने को व्याकुल हो जाता है।वह ईश्वर को मंदिर,मजिस्द,गुरूद्वारा,चर्च में ढंढ़ता है,किन्तु अज्ञानतावश वह ईश्वर को ढूंढ़ नहीं पाता है,क्योंकि ईश्वर तो प्रकृति के कण कण में व्याप्त है,जरूरत है तो केवल उन्हे देखने की,"

2 comments:

  1. बिलकुल सही कहा है किन्तु मनुष्य समझता नहीं है इतना ज्ञान होने पर भी वह अज्ञानी बना रहता है. बहुत अच्छा लिखा है. धन्यवाद

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  2. ज्ञान वर्धक लेख के लिए धन्यवाद्|

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