Tuesday, August 7, 2012

बड़ा लक्ष्य

एक राजा था. वह  कुछ  अधिक  ही  महत्वाकांक्षी  था. उसके पिता ने कभी कहा था सदा बड़ा लक्ष्य रखो. अत: अपने राज्य विस्तार के लिए सदा बड़े राज्यों पर आक्रमण करता और हार का मुंह देखता. एक बार जंगल में शिकार खेलता हुआ  वह अपन साथियों से बिछुड़ गया. भटकते हुए उसे भूख लगी. दूर एक झोंपड़ी दिखाई दी. जा कर देखा तो एक गरीब वृद्धा चावल पका रही थी.
राजा ने अपना परिचय छिपाते हुए कहा-
" माता जी ! मैं इस राज्य का एक अदना सा सिपाही हूँ. जंगल में भटक गया हूँ. भूख लगी है...कुछ मिलेगा?"  वृद्धा प्यार से  बोली-
" बैठो बेटा ! मैं अभी खाने को देती हूँ." एक पत्तल पर ढेर सारा गर्म-गर्म भात परोस दिया.
राजा को इतनी जोर से भूख लगी थी कि उसने अधीरता से खाना शुरू कर दिया. पहला ही बड़ा सा  कौर लेने के चक्कर में उसकी उँगलियाँ जल गईं. वह दर्द से कराह उठा. यह देख वृद्धा हंस पड़ी.बोली- " तुम भी यहाँ के राजा की तरह अधीर हो और दूर की नहीं सोचते."
" क्या मतलब ? मैं आपके कहने का अभिप्राय नहीं समझा."
" किनारे से छोटा-छोटा कौर भरने की अपेक्षा, बीच में से बड़ा कौर भरा और उंगलियाँ जला बैठे. यहाँ का राजा भी आस-पास के बड़े राज्यों पर हमला कर रहा है और मुंह की खा रहा है. यह नहीं कि धीरज रख कर, पहले छोटे-छोटे राज्यों को जीत कर अपनी शक्ति बढ़ा ले और फिर बड़े राज्यों को जीते."
राजा वृद्धा की बुद्धिमानी देख हतप्रभ रह गया. उसके चरण स्पर्श  कर आशीर्वाद लिया और तदनुसार विजय अभियान पर निकल पड़ा.
ज़िन्दगी की सीख : बड़ा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कुशल रणनीति एवं धैर्य की आवश्यकता

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